भारत से चीन आर्थिक क्षेत्र में पराजित कब होगा: पंडित अनिल पांडेय

आप इस विषय को देख कर चौक गए होंगे कि भारत से चीन पराजित कहां हो गया। अभी तो लड़ाई हुई भी नहीं और चीन पराजित कैसे हो गया। आर्थिक क्षेत्र में भारत और चीन की लड़ाई सदियों से चल रही है और चलती रहेगी।

देश की आर्थिक उन्नति का मुख्य पैमाना जीडीपी होता है। जीडीपी का अर्थ है सकल घरेलू उत्पाद। नियत समय के अंतराल में, जो कि सामान्य तौर पर 1 वर्ष होता है। यह एक देश में अपने सीमा के अंदर सेवाओं एवं अंतिम उत्पादों को मिलाकर कितने की, कितने का उत्पादन किया है, यह उत्पादन की राशि सकल घरेलू उत्पाद कहलाती है।

1600 ईसा सन से घरेलू उत्पाद का विवरण मिलता है। उस समय भारत में मुगलों का शासन हुआ करता था। उस समय भारत की जीडीपी विश्व के दूसरे नंबर की जीडीपी थी। पहले नंबर पर चीन की जीडीपी आती थी तथा यूएसए यूएसए ,यूके आज समस्त देश की जी डीपी भारत के नीचे थी। हम 1947 में स्वतंत्र हुए कथा उस समय भारत की जीडीपी विश्व में आठवें नंबर पर थी।

अब हम आते हैं भारत की कुंडली के हिसाब से भारत कब जीडीपी के अनुसार विश्व का सिरमौर राष्ट्र होगा यह पता करते हैं। भारत की चंद्र कुंडली के अनुसार चंद्र कर्क राशि में है तथा उनके साथ में सूर्य शुक्र शनि और बुध भी हैं द्वितीय भाव का स्वामी सूर्य है जो कि अपने मित्र के साथ राशि में बैठा हुआ है। इसी प्रकार पंचम भाव में केतु अपने उच्च राशि में एकादश भाव में राहु अपनी उच्च राशि में द्वादश भाव में मंगल अपने शत्रु की राशि में है।

नवांश कुंडली का भी आर्थिक क्षेत्र में काफी योगदान होता है। अतः नवांश कुंडली का अध्ययन करना भी उपयुक्त रहेगा। नवांश कुंडली में लग्न मीन का है। इसमें के सूर्य बैठा हुआ है। तृतीय भाव में अपने शत्रु राशि में गुरु है। छठे भाव में केतू हैं। सातवें भाव में चंद्रमा है। नवम भाव में बुद्ध हैं। दशम में अपने मित्र राशि में मंगल है। एकादश भाव में अपनी ही राशि में शनि है तथा शुक्र भी अपनी मित्र राशि में है। द्वादश भाव में राहु है।

हम सभी जानते हैं कि आर्थिक रूप से उन्नति के लिए एकादश भाव अर्थात लाभ का भाव द्वितीय भाव अचानक धन का भाव का विशेष अध्ययन करना होगा। इसके अलावा बगैर कर्म किए धन की प्राप्ति नहीं होती है अतः दशम भाव, बगैर भाग्य के किसी भी चीज की प्राप्ति नहीं होती है, अतः नवम भाव तथा द्वादश भाव जो खर्चे का भाव है उसका भी अध्ययन करना होगा।

15 अगस्त 1947 से लेकर 9 अगस्त 1957 तक भारत की कुंडली के अनुसार जोकि 15 अगस्त के प्रातः 9:00 बज कर 1 मिनट के अनुसार बनाई गई है शनि की महादशा थी। चूंकि शनि अपने शत्रु के भाव में है, अतः कमजोर है। इसकी अवस्था में भारत की आर्थिक उन्नति होना संभव नहीं है। इसीलिए इस अवधि में भारत की आर्थिक उन्नति हुई अवनति हुई तथा भारत की जीडीपी जो 1948 में आठवें नंबर पर थी घटकर 1957 में 10वें नंबर पर पहुंच गई। 9 अगस्त 57 से 9 अगस्त 74 तक बुध की महादशा थी। बुद्ध भी अपनी शत्रु राशि में बैठा हुआ है, अतः यह भी कमजोर है।

इसीलिए इस अवधि में भारत की जीडीपी दसवें स्थान से घिसक कर 11 वे स्थान पर पहुंच गई। 8 अगस्त 74 से 9 अगस्त 81 तक केतु की दशा थी केतु का कार्य है कि वह कन्फ्यूजन पैदा करता है। भारत की भी राजनीति में इन दिनों काफी उलटफेर हुए। इमरजेंसी भी लगी थी। भारत की जीडीपी 11 वे स्थान से घटकर 13 स्थान में पहुंच गई। इस अवधि में कुछ समय वह 14वें स्थान पर भी रही। 8 अगस्त 81 से 9 अगस्त 2001 तक शुक्र की महादशा थी। शुक्र भी अपने शत्रु के भाव में है अतः उससे भी कोई अच्छे की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। परंतु इसके साथ-साथ शुक्र नवांश कुंडली में अपने मित्र की राशि में है तथा एकादश भाव में बैठा हुआ है।

अतः कुल मिलाकर शुक्र का असर आर्थिक क्षेत्र सामान्य होना चाहिए। इसी कारण इस अवधि में भारत की जीडीपी विश्व में 13 स्थान से 13वें स्थान पर ही रही। परंतु शुक्र एक खराब है साथ ही एकादश भाव में बैठ कर के इस भाव को उसने खराब ही किया है, अतः बीच में 93, 94 एवं 96 में भारत की जीडीपी अत्यंत खराब स्थिति में पहुंच गई। वह विश्व के प्रथम 10 से बाहर भी हो गई थी। परंतु नवमांश कुंडली के अच्छे असर के कारण अंत में पुनः अपने पुराने स्थान अर्थात 13वें स्थान पर पहुंच गई।

9 अगस्त 2001 से 8 अगस्त 2007 तक सूर्य की महादशा थी। सूर्य अपने मित्र राशि में है तथा एकादश भाव में बैठा हुआ है। अतः उसने अच्छा फल दिया एवं भारत की स्थिति बेहतर हुई तथा वह 13वें स्थान से 12वें स्थान पर पहुंच गया।

9 अगस्त 2007 से 9 अगस्त 2017 तक चंद्र की महादशा थी। लग्न कुंडली में चंद्र एकादश भाव में लाभ के भाव में अपनी ही राशि में बैठा है। इस समय मैं भारत में आर्थिक क्षेत्र में अत्यंत उन्नति की तथा विश्व में उसका स्थान 12 स्थान से घटकर सातवें स्थान पर हो गया।

9 अगस्त 17 से 9 अगस्त 24 तक मंगल की महादशा रहेगी। लग्न कुंडली में मंगल दशम स्थान में अपनी शत्रु राशि में बैठा हुआ है। लग्न कुंडली के हिसाब से मंगल भारत की आर्थिक क्षेत्र में उन्नति को बाधित करेगा, जोकि स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहा है।

वर्तमान में भारत की आर्थिक स्थिति कोरोना की वजह से काफी कमजोर है। परंतु इसी समय विश्व मे भी कोरोना की वजह से आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है। नवमांश कुंडली में मंगल मित्र राशि का होकर दशम भाव में है। नवांश कुंडली के हिसाब से यह अच्छा करेगा। चंद्र कुंडली में मंगल द्वादश भाव में है। द्वादश भाव में दुष्ट ग्रह अच्छा फल देते हैं। अतः 2017 से 2024 तक शुरू में भारत की आर्थिक वृद्धि में कमी आएगी। परंतु बाद में भारत की आर्थिक गतिविधियां सातवें स्थान से विश्व में चौथे स्थान पर पहुंच जाएगी।

9 अगस्त 24 से 9 अगस्त 42 तक राहु की महादशा रहेगी। राहू सामान्य रूप से एक खराब फल देने वाला ग्रह है परंतु यह भारत की कुंडली में उच्च का होकर नवम भाव में बैठा है। अतः इसका निष्कर्ष यह रहेगा कि भारत तीसरे स्थान पर अगस्त 42 तक बना रहेगा।

9 अगस्त 42 से 9 अगस्त 58 तक भारत की कुंडली में गुरु की महादशा रहेगी। वर्तमान लग्न कुंडली में गुरु द्वितीय भाव में अर्थात धन भाव में है। परंतु अपने शत्रु शुक्र की राशि में है। अतः काफी कमजोर है। गुरु चतुर्थ भाव एवं सप्तम भाव का स्वामी भी है। अतएव अपनी दशा में गुरु अच्छे फल देगा। इस अवधि में भारत की आर्थिक स्थिति विश्व में तीसरे नंबर से प्रथम नंबर पर आ जाएगी।

2020 एवं उसके बाद भारत की कुंडली में आने वाले ग्रहों की दशा को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सन 2058 में भारत विश्व में सर्वोच्च स्थान पर होगा तथा चीन उस समय तक आर्थिक स्थिति में भारत से पिछड़ जाएगा।
जय माँ शारदा।

पंडित अनिल पांडेय
ज्योतिषाचार्य