बिहार चुनाव: तय हो गया फिर एक बार, फिर से नीतीशे कुमार

बिहार विधानसभा की सभी सीटों के चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद सियासी तस्वीर पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है और मंगलवार को मतगणना के पूरे दिन रहा असमंजस भी खत्म हो चुका है।

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 243 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से 125 सीटों पर विजय मिली है। जो कि बहुमत के लिए जरूरी 122 के जादुई आंकड़े से तीन अधिक है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को बहुत मिलने के बाद ये भी तय हो गया है कि प्रदेश में नीतीश कुमार की सरकार बनेगी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री होंगे।

वहीं बिहार विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मुख्य प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन को 110 सीटों पर जीत मिली है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दलों में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को 43 सीटों पर जीत मिली है। वहीं भाजपा ने इस बार शानदार प्रदर्शन करते हुए 74 सीटों पर सफलता हासिल की है। इसके अलावा एनडीए के अन्य घटक हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने 4 और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने 4 सीटें जीती हैं।

एग्जिट पोल के अनुमानों को झुठलाते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बहुमत प्राप्त कर लिया है। एनडीए को बहुमत के बाद यह तय है कि नीतीश कुमार ही बिहार के अगले मुख्यमंत्री होंगे। हालांकि चुनाव परिणाम सामने आने के बाद ये भी साफ है कि नीतीश कुमार को सत्ता तो मिली, लेकिन उनकी पार्टी की सीटें कम आने से उनका प्रभाव कम हुआ है।

इस चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व करने वाली आरजेडी को 75 सीटों पर जीत मिली है और आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। जबकि महागठबंधन की घटक कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों को 19 सीटों पर जीत मिली है, जबकि कम्युनिस्ट पार्टियों ने 16 सीटें जीतीं।

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के उम्मीदवार भी पांच सीटें जीतने में सफल रहे।

वहीं एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) चिराग पासवान के नेतृत्व में केवल एक सीट ही जीत पाई। बहुजन समाज पार्टी ने भी एक सीट जीती है। जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में गई।

इस चुनाव में पप्पू यादव के दल जन अधिकार पार्टी (जाप) और पुष्पम प्रिया की प्लूरल्स पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका। स्थिति यह रही कि इन दोनों दलों के मुखिया अपनी सीट तक नहीं जीत पाए।