दहेज हमारी मानसिक विकलांगता का प्रतीक: प्रार्थना राय

हम चाहे कितना भी आगे निकल जाएं, ऊँचा उड़कर विकास के स्वर्ण शिखर को छू लें, समय की रफ्तार को भी पीछे छोड़ दें, प्रत्येक क्षेत्र में हम अपनी शक्ति स्थापित कर दुनिया में एक अलग पहचान बनाने में सफल हो जाएं, फिर भी हम स्वयं की मानसिकता नहीं बदल पा रहें हैं और ना ही विचार बदल पा रहें।

एक ओर बेटी बचाओ का नारा लगाते हैं तो दूसरी ओर बेटी को दहेज की आग में झोंक कर मार डालो, यही विचार जो हमारी मानसिक विकलांगता को दर्शाता है। क्या हमारा समाज चन्द पैसों की खनक पर मदारी की भूमिका में आ खड़ा हुआ है। दहेज के कारण जो परिस्थितियां समाज में उत्पन्न हो रही हैं, उसका जिम्मेदार कौन है?

और कोई नहीं हम और आप हैं, क्या हम सब एक अभियान के तहत दहेज विरोधी नारे नहीं लगा सकते, बस केवल और केवल काग़जी विधि पर ही हम भरोसा करें। आखिर दहेज के सुलगते मुद्दे को कब आश्रय मिलेगा?

दहेज के कारण न जाने कितने लोग कर्ज तले दबे हुए हैं। अधिकांश लोगों की बात की जाए, तो पिता का जीवन दहेज के कर्ज को चुकाते-चुकाते बीत जाता है और उसके बाद पुत्र की भी आधा उमर कर्ज भरते-भरते निकल जाती है। 

सोचनीय और चिंता का विषय है, क्या हम दहेज के नशे में चूर नशेडी़ हो गये हैं, क्या दया नहीं आती एक ओर पिता रोते-रोते बेटी की विदाई करतें हैं और हमारा समाज ट्रक में समान लदवाने में जुट जाता है। सब कुछ देने के बाद अपने हृदय का एक हिस्सा आप को सुपुर्द करते हुए एक पिता जो महसूस करता है, शायद दूसरा कोई नहीं समझ सकता। 

हम किस परम्परा के आधीन हैं, जो काल दर काल से आज तक चलती आ रही इस कुप्रथा को खत्म नहीं कर पा रहे हैं। दहेज रूपी विषैले वृक्ष की जड़ को नष्ट करने में हम असफल हैं। चारों ओर दहेज का हाहाकार मचा हुआ है, दोषी कौन है, हमें पुनर्विचार करना होगा। जरा गौर करें मानवता के आधार पर देखा जाए, तो दहेज का रूप कितना भयावह होता जा रहा।

ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब समाचार पत्रों में दहेज के कारण बेटी को जलाये-सताये जाने की खबर ना छपती हो और बहुत ही द्रवित मन से लिख रही हूँ कि आँख और कान से भी देखने सुनने को मिल ही जाता है।

हम बेटियांँ कहां सुरक्षित हैं अब ये कहना सरल नहीं, गर्भ से लेकर सामाजिक पक्षपात से ग्रसित हैं हम। बस दीवारों पर पेंटिंग करा दी जाती है, दहेज सामाजिक अभिशाप है, बेटी बचाओ- बेटी पढा़ओ, एक कैलेण्डर की भांति आते देखो जाते देखो परन्तु अमल कोई नहीं करता। 

हमारा समाज जो सफलता की लंबी सांस भरता है, पूरी तरह से भ्रम में है, क्योंकि स्वयं जकड़ा हुआ है सामाजिक कुरितियों से और दहेज की आग तब तक नहीं बुझ पायेगी, जब तक हम और आप जागरूक नहीं होंगे।

प्रार्थना राय