भारतीय खगोल शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड में खोजी छिपी हुई आकाशगंगा

खगोल शोधकर्ताओं ने लगभग 13 करोड़ 60 लाख प्रकाश वर्ष दूर एक धूमिल लेकिन तारों का निर्माण करने वाली ऐसी आकाशगंगा की खोज की है, जो अब तक ज्ञात नहीं थी, क्योंकि यह एक बहुत अधिक चमकीली आकाशगंगा के सामने स्थित है। कम डिस्क घनत्व के कारण ऑप्टिकल छवियों में यह गैलेक्सी ‘भुतहाÓ प्रतीत होती है, किन्तु इसकी आंतरिक डिस्क स्टार फार्मेशन भी दिखाती है। आंतरिक डिस्क स्टार फार्मेशन ने यूवी और ऑप्टिकल छवियों में इसका पता लगाने में मदद की। ब्रह्मांड में सामान्य परमाणु पदार्थ से बने सभी पिंडों के कुल द्रव्यमान को मापने के लिए ऐसी धूमिल आकाशगंगाओं की सटीक गणना आवश्यक है।

जैसे-जैसे ऑप्टिकल टेलीस्कोप अधिक से अधिक शक्तिशाली होते गए हैं, वे ऐसी आकाशगंगाओं का पता लगाने के लिए पर्याप्त संवेदनशील होते रहते हैं जो बेहद धूमिल होती हैं। ऐसी आकाशगंगाओं को निम्न सतह चमक वाली आकाशगंगाएँ अथवा अल्ट्रा-डिफ्यूज गैलेक्सीज कहा जाता है और इनकी सतह की चमक आसपास के रात्रि आकाश की तुलना में कम से कम दस गुना कम होती है। ऐसी धूमिल आकाशगंगाएँ ब्रह्मांड के द्रव्यमान का 15 प्रतिशत तक का हिस्सा हो सकती हैं। हालांकि उनकी अंतर्निहित कम चमक के कारण उनका पता लगाना मुश्किल है।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान बेंगलुरु के शोधकर्ताओं की एक टीम जिसमें ज्योति यादव, मौसमी दास और सुधांशु बर्वे शामिल हैं, ने  कॉलेज डी फ्रांस के फ्रेंकोइस कॉम्ब्स, चेयर गैलेक्सीज एट कॉस्मोलॉजी, पेरिस ने एक ज्ञात अंत:क्रियात्मक आकाशगंगा एनजीसी 6902ए का अध्ययन करते हुए पाया कि रंग छवि आकाशगंगा के दक्षिण-पश्चिम बाहरी क्षेत्र एनजीसी 6902ए शो में नीले उत्सर्जन को फैलाती है।

डीईसीएएलएस अंतरराष्ट्रीय दूरबीनों पर किया गया एक गहरा ऑप्टिकल सर्वेक्षण है जिसका उपयोग डिफ्यूज गैलेक्सीज का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। यह दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र सुदूर पराबैंगनी छवि में प्रमुख तारा-निर्माण क्षेत्रों को दशातज़ है। आकाशगंगाओं में अधिकांश एफयूवी उत्सर्जन ओ और बी प्रकार के युवा सितारों के कारण होता है- जो आकाशगंगाओं में सबसे विशाल और सबसे अल्पकालिक तारे भी हैं। लेकिन वे 10 करोड़ वर्षों के लिए एफयूवी प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं जो अन्य स्टार फॉर्मेशन ट्रेसर की तुलना में तुलनात्मक रूप से लंबा है। इस अतिरिक्त एफयूवी प्रकाश ने शोधकर्ताओं को अंत:क्रिया के कारण को निर्धारित करने के लिए इसकी अनूठी विशेषता की अधिक विस्तार से जांच करने के लिए प्रेरित किया।

शोधकर्ताओं ने स्पेक्ट्रा में उत्सर्जन लाइनों का उपयोग करके एनजीसी 6902ए, एक पहले से ज्ञात आकाशगंगा और फीके तारे बनाने वाले क्षेत्रों की दूरी को मापा। उन्होंने पाया कि ये तारा बनाने वाले क्षेत्र लगभग 13 करोड़ 60 लाख प्रकाश-वर्ष की दूरी पर हैं, जबकि एनजीसी  6902ए की दूरी लगभग 82 करोड़ 50 लाख प्रकाश-वर्ष है। इसका मतलब है कि डिफ्यूज नीला उत्सर्जन एक फोरग्राउंड गैलेक्सी से था, जिसे उन्होंने एफयूवी और एमयूएसई  डेटा का उपयोग करके खोजा था।

उन्होंने इसका नाम यूवीआईटी जे 202258.73-441623.8 रखा है, इस तथ्य के आधार पर कि एस्ट्रोसैट पर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप के डेटा ने उन्हें गैलेक्सी की खोज करने और आकाश पर इसके निर्देशांक निर्धारित करने में मदद की। उन्होंने इस अध्ययन में चिली में वेरी लार्ज टेलीस्कोप पर मल्टी-यूनिट स्पेक्ट्रोस्कोपिक एक्सप्लोरर उपकरण और दक्षिण अफ्रीका में आईआएसएफ और डार्क एनर्जी कैमरा लिगेसी सर्वे की छवियों का भी उपयोग किया। यह शोध ‘एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

यूवीआईटी जे 2022 को पहले गलती से एनसीजी 6902ए के इंटरेक्टिंग टेल का हिस्सा माना जाता था। यह अध्ययन इस संभावना को बढ़ाता है कि ऐसी ही समान डिफ्यूज गैलेक्सीज हो सकती हैं जिन्हें अग्रभूमि या पृष्ठभूमि आकाशगंगाओं के साथ उनकी  सुपरपोजिशन के कारण परस्पर क्रिया करने वाली आकाशगंगाओं के रूप में गलत तरीके से समझा गया है। पराबैंगनी, ऑप्टिकल उत्सर्जन द्वारा पता लगाया गया तारा निर्माण हमारे स्थानीय ब्रह्मांड में ऐसी विसरित तारा निर्माण करने वाली आकाशगंगाओं का पता लगाने का एक तरीका हो सकता है।

जो पदार्थ हम अपने चारों ओर देखते हैं, उसे बैरियोनिक पदार्थ कहते हैं। ब्रह्माण्ड संबंधी अध्ययनों से पता चलता है कि बैरियोनिक पदार्थ को ब्रह्मांड के द्रव्यमान का 5 प्रतिशत होना  चाहिए। शेष द्रव्यमान में अज्ञात रूपों, जैसे कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी द्वारा योगदान होना  चाहिए। हमें अभी भी ब्रह्मांड में मौजूद 5 प्रतिशत बेरियोनिक सामग्री के बारे में स्पष्ट समझ नहीं है, हम यह भी नहीं जानते कि सभी बेरियन कहाँ-कहाँ मौजूद हैं। ये धूमिल आकाशगंगाएं ब्रह्मांड में लापता बेरियोन की उत्पत्ति को समझने के लिए एक कड़ी के रूप में कार्य कर सकती हैं, क्योंकि इनसे ब्रह्मांड में बेरियोनिक द्रव्यमान में महत्वपूर्ण योगदान मिल सकता है।

एक नई अग्रभूमि आकाशगंगा की खोज, जिसे यूवीआईटी और एमयूएसई जैसे शक्तिशाली उपकरणों का उपयोग करते हुए एक उज्ज्वल पृष्ठभूमि आकाशगंगा की ज्वारीय विशेषता के रूप में गलत माना गया था, इसी प्रकार के मामलों की खोज के लिए एक नया प्रवेश द्वार खोलता है, जहां आकाशगंगाओं की अंत:क्रिया में ब्ल्यू डिफ्यूज टाइडल विशेषताएं किसी विलय का अवशेष नहीं हो सकती हैं, बल्कि इसके बजाय वे एक अलग ही अग्रभूमि अथवा पृष्ठभूमि आकाशगंगा भी हो सकती हैं। यह डिफ्यूज आकाशगंगाओं का पता लगाने के लिए एफयूवी और एचα उत्सर्जन जैसे स्टार फॉर्मेशन ट्रेसर्स का उपयोग करने की शक्ति को भी दर्शाता है।