26 मई को लगेगा खग्रास चंद्रग्रहण: जानिए क्या होगा आपकी राशि पर असर

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इस वर्ष 2021 में विश्व में 4 ग्रहण होंगे । दो सूर्य ग्रहण तथा दो चंद्र ग्रहण। सबसे पहले 26 मई बुधवार को वैशाख पूर्णिमा के दिन खग्रास चंद्र ग्रहण लगेगा। यह चन्द्र ग्रहण चंद्रोदय के समय आंशिक रूप से भारत के सुदूर पूर्वोत्तर भाग में और पश्चिम बंगाल के कुछ भाग में ही देखा जा सकेगा।

अगर हम विश्व की बात करें तो इस ग्रहण का प्रारंभ चंद्रास्त के समय अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के पूरे भाग से देखा जा सकेगा। ग्रहण का मोक्ष चंद्रोदय के समय हिंद महासागर, श्रीलंका, भारत के सुदूर पूर्वोत्तर भाग, चीन, कोरिया, जापान और रूस से भी देखा जा सकेगा। भारतीय समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ दिन में 3:15 बजे होगा, इसका मध्य 4:49 बजे तथा मोक्ष शाम 6:30 बजे होगा।

भारतवर्ष की जिन स्थानों पर चंद्रोदय 6 बजकर 22 मिनट से पहले होगा, वहां यह चंद्र ग्रहण दिखाई देगा। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चंद्रोदय रात 7:16 पर होगा, इसलिए ग्रहण मध्य प्रदेश में दिखाई नहीं देगा और यहां पर सूतक भी नहीं लगेगा।

ज्योतिष के अनुसार ग्रहण के समय चंद्रमा अनुराधा नक्षत्र एवं वृश्चिक राशि में रहेगा। ये खग्रास चंद्रग्रहण मिथुन, कर्क, कन्या, मकर एवं कुंभ राशि के लिए शुभ होगा। वहीं वृष, तुला, और मीन राशि के लिए मिश्रित फलदाई है तथा मेष, सिंह, वृश्चिक और धनु राशि के लिए अशुभ फलदाई है। एक बात हम और जान ले कि सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन तथा चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णमासी  को लगता है।

हम सबसे पहले ग्रहण के आधुनिक मत की चर्चा करेंगे। हम सभी जानते हैं कि सौर मंडल के पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर काटते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। अतः यह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटता है। इस दौरान आधुनिक विज्ञान के अनुसार एक समय ऐसा आता है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक लाइन में होते हैं तथा पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। जिसके कारण सूर्य की किरणों चंद्रमा पर नहीं पहुंच पाती है और चंद्रमा दिखाई देना बंद हो जाता है। इसी क्रिया को पूर्ण चंद्रग्रहण कहते हैं। कई बार चंद्रमा का कुछ हिस्सा तो नहीं दिखाई देता है, परंतु कुछ हिस्सा दिखाई देता है, ऐसे ग्रहण को खग्रास ग्रहण कहते हैं, जैसा कि 26 मई 2021 को होगा ।

आपको मैं यह भी बताना चाहूंगा की खगोल शास्त्रियों नें गणित से निश्चित किया है कि 18 वर्ष 18 दिन की समयावधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते हैं। एक वर्ष में अधिकतम 5 सूर्यग्रहण तथा 2 चन्द्रग्रहण तक हो सकते हैं।

अब हम पारंपरिक पौराणिक मान्यता के संबंध में चर्चा करेंगे। मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में देव और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन का उल्लेख आता है। मत्स्य पुराण के 291 अध्याय के श्लोक क्रमांक 1 से 15 के बीच में देवता बनकर अमृत पी रहे राहु के सिर को काटे जाने का उल्लेख मिलता है ।

इस कथानुसार समुद्र मंथन के दौरान अंत में भगवान धन्वंतरि अपने कमंडल में अमृत लेकर प्रकट हुए और इस अमृतपान को लेकर देवों और दानवों के बीच विवाद हुआ। इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग लाइन में बिठा दिया। लेकिन राहु छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। देवों की लाइन में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने राहू को ऐसा करते हुए देख लिया।

इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहू ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। इसी कारण राहू और केतु, सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्र ग्रहण होता है।

हिंदू धर्म के मूल ग्रंथ वेद में भी ग्रहण के बारे में उल्लेख है। वैदिक काल के ऋषि अत्री ग्रहण विज्ञान के पहले शोधकर्ता ऋषि थे। ऋषि अत्री ने ही सर्वप्रथम ग्रहण के बारे में वेदों में अपनी ऋचाएं लिखी हैं। ऋग्वेद के पांचवें मंडल के 40वें सूक्त में बताया गया है। ऋषि अत्री ने देवताओं को ग्रहण से मुक्ति दिलाई अर्थात उन्होंने देवताओं को ग्रहण से मुक्ति के समय को गणना कर बताया।

ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में राहु और केतु का उल्लेख नहीं है। लेकिन अथर्ववेद में केतु का उल्लेख मिलता है। केतु का स्वरूप पुच्छल तारे से मिलता जुलता है। वहीं महाभारत की जयद्रथ वध कथा में सूर्य ग्रहण का उल्लेख मिलता है।

यह चंद्र ग्रहण वृश्चिक राशि पर लग रहा है। अतः सबसे ज्यादा असर वृश्चिक राशि पर ही होगा। चूंकि यह चंद्र ग्रहण भारत के अधिकांश क्षेत्र में नहीं दिखेगा, अतः इसका असर भी भारतवर्ष के नागरिकों पर बहुत कम होगा।

चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को घर से निकलना वर्जित है। इसका कारण संभवत यह है कि उस समय निकलने वाली किरणें बच्चे के ऊपर खराब असर डाल सकती हैं। चंद्र ग्रहण का असर पशु पक्षियों पर भी पड़ता है और वे इस समय अजीब अजीब व्यवहार करते हैं। जैसे ग्रहण के दौरान मकड़िया अपने जाले को तोड़ना प्रारंभ कर देती है तथा ग्रहण समाप्त होते ही फिर से बनाना प्रारंभ कर देती है। पक्षी अचानक अपने घोसले की तरफ लौटने लगते हैं।

अंत में मैं कहना चाहूंगा कि चंद्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है और उससे निकलने वाले रश्मिओं का असर मानव एवं पशु पक्षी पर पड़ता है। परंतु इतना नहीं होता है कि उससे हमको डरना चाहिए। हां आवश्यक सावधानियां बरतनी चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पं अनिल पांडेय
सागर, मध्य प्रदेश