षट्तिला एकादशी का व्रत करने से होती है सभी सुखों की प्राप्ति

जो व्यक्ति षट्तिला एकादशी का व्रत करता है उसे वाचिक, मानसिक और शारीरिक पापों से मुक्ति मिलती है।

हिंदू मान्यता के अनुसार एकादशी तिथि के व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इस दिन व्रत करने से सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। वर्ष भर में पडऩे वाली 24 एकादशियों में षटतिला एकादशी व्रत का विशेष महत्व है।

इस वर्ष षटतिला एकादशी व्रत 7 फरवरी रविवार को पड़ रहा है। 7 फरवरी को सुबह 6:26 बजे से एकादशी तिथि का प्रारंभ होगा और 8 फरवरी को सुबह 4:47 बजे एकादशी तिथि समाप्त होगी।

शास्त्रों के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन तिल को पानी में डालकर नहाना शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के दौरान तिल अर्पित करना शुभ माना जाता है। इस दिन पूजा-पाठ के साथ दान का भी विशेष महत्व है।

इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान, उबटन, आहुति, तर्पण, दान और खाने में किया जाता है। जो व्यक्ति षटतिला एकादशी का व्रत करता है उसे वाचिक, मानसिक और शारीरिक पापों से मुक्ति मिलती है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का महत्व बहुत ज्यादा होता है। इस दिन व्यक्ति को भोग एवं भोजन में तिल का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही अपनी सामर्थ्य अनुसार तिल का दान भी करना चाहिए, इसका पुण्य बेहद फलदायी होता है।

हिंदू मान्यता के अनुसार षटतिला एकादशी की कथा कुछ इस प्रकार है। एक महिला थी जिसके पास विशाल संपत्ति थी। वह निर्धनों को बहुत दान करती थी और आमतौर पर बहुत अधिक दान देती थी। वह निर्धनों और जरूरतमंदों को बहुमूल्य उपहार, कपड़े आदि वितरित करती थी, लेकिन वह उन्हें कभी भी भोजन नहीं देती थी।

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि सभी उपहार और दान के बीच, सबसे महत्वपूर्ण और दिव्य भोजन का दान माना गया है, क्योंकि यह दान करने वाले व्यक्ति को महान गुण प्रदान करता है। यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने इस तथ्य से महिला को अवगत कराने का निर्णय किया। वे उस महिला के सामने भिखारी के रूप में प्रकट हुये और भोजन मांगा। जैसा कि अपेक्षित था महिला ने दान में भोजन देने से इनकार कर दिया और उन्हें निकाल दिया।

वे बार-बार भोजन मांगते रहे, लेकिन महिला ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया, जो एक भिखारी के रूप में थे और गुस्से में भोजन देने के बजाय भीख की कटोरी में एक मिट्टी की गेंद डाल दी। यह देखकर उन्होंने महिला को धन्यवाद दिया और वहां से चले गये।

जब महिला वापस अपने घर लौटी, तो वह यह देखकर अचंभित हो गई कि घर में जो भी भोजन था, वह सब मिट्टी में परिवर्तित हो गया। यहाँ तक कि उसने जो कुछ भी खरीदा था, वह भी मिट्टी में बदल गया। भोजन के मिट्टी में परिवर्तित हो जाने से भूख के कारण उसका स्वास्थ्य बिगडऩे लगा। उसने इस सब से बचाने के लिए भगवान से प्रार्थना की।

महिला के अनुरोध को सुनकर, भगवान श्रीकृष्ण उसके सपनों में प्रकट हुए और उसे उस दिन की याद दिलाई, जब उसने उस भिखारी को भगा दिया था और जिस तरह से उसने अपने कटोरे में भोजन के बजाय मिट्टी डालकर उसका अपमान किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि इस तरह का कर्म करने से उसने अपने दुर्भाग्य को आमंत्रित किया और इस कारण उसे दुख भोगना पड़ रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण उसे षटतिला एकादशी के दिन व्रत रखने और निर्धनों को भोजन दान करने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण की बात मानकर महिला ने एक व्रत का पालन किया और साथ ही निर्धन और भूखों को भोजन दान किया, जिसके बाद महिला को सभी तरह के सुखों की प्राप्ति हुई।