तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना,
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया
बाँधी है आँचल से नेह की गठरिया,
बहके मलंग मन खाया है भंग कोई
चढ़ गया तन पर फागुन का रंग कोई,
हिय के हिंडोले में साजन संग डोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
रेशम सी चाहत के धागों का टूटना
पलकों के कोरों से अश्कों का फूटना,
दिन दिनभर आँखों से दर को टटोलना
गिन गिनकर दामन में लम्हें बटोरना,
पूछे है धड़कन क्यों बोले न ढोलना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।
रूठा है जबसे तू कलियाँ उदास है
भँवरें न बोले तितलियों का सन्यास है,
सूनी है रात बहुत चंदा के मौन से
गीली है पलकें ख्वाब देखेगी कौन से,
बातें है दिल की तू लफ्ज़ो से तोल ना
धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना।