सुनो,
गुलाब की पंखुड़ियों को तरह जो ज़रा सा मुस्कुराती हो न लगता है जैसे फिज़ा में किसी ने ख़ुशबू बिखेर दिया हो।
आओ बैठो पास कभी तो तुम्हें बताये कि कैसे तुम्हारे इंतजार में एक एक दिन गुजारना मुश्किल होता है।
इन्द्रधनुष के सप्त रंगों की तरह हफ्ते के सात दिन के सारे दिन मैं रोज एक रंग भरे सपनों को तुम पर कुर्बान करता हूं।
सोमवार को मैं चला जाता हूँ सूरजमुखी के खेत में और इंतजार करता हूँ कि सूरज के क्षितिज में डूबने के बाद शायद तुम आओ और मैं तुम्हारे जुल्फों के साए में एक सूरजमुखी का फूल सजा सकूं।
मंगलवार को मैं लिखता हूं नज़्म तुम्हारे लिए, जिसमें होता है ज़िक्र तुम्हारे आंखों का, कि तुम्हारे होठों, जुल्फों और यादों की, आओ पास की मेरे हर नज़्म हवा में तैर रहे है। मेरे घर के दीवारों भी कह रही मेरी लिखी हर नज़्म की दास्तां ।
आओ पास बैठो हजूर कुछ देर,
की ये शाम चाहता है साथ तुम्हारा
बुधवार को मैं चले जाता हूँ पास के बाजार में तुम्हारे लिए ले आता हूं गजला जिसे सजाना चाहता हूँ तुम्हारी जुल्फों के हर एक कोने में, मैं जानता हूँ ख़ुशबू गजलें से ज्यादा तुम्हारे उस एक नज़र की ज्यादा होगी जो मुझे देख कर ज़रा सी मुस्कुराने के बाद आती है तुम्हारे होठों पर।
गुरुवार को मैं जाता हूँ मंदिर करता हूं तुम्हारी सलामती की दुआ।
मेरे प्राथना में होती है बस तुम्हारी जिक्र बस यहीं कामना तुम्हारी खुशियों की, मैं अपनी ख़ुशी भी तुम्हें देने के लिए भगवान से जिद करता हूँ और तुम्हारे गम मुझे देने की भी।
शुक्रवार के दिन मैं दिन भर सजाता रहता हूं कमरे का हर एक कोना,मै तय करता हूं तुम्हारे पसंद का बेडशीट, पर्दो का रंग होता है, हल्की गुलाबी तुम्हारे गुलाबी गालों की तरह।
हाल में रखूंगा मैंअपनी लिखीं नज़्म की किताबे जिसके हर पन्ने में होगी सिर्फ़ तुम्हारी ज़िक्र, हर शब्द महकते हुए तुम्हारे कानों में कहेगा।
आई लव यू, आई मिस यू
शनिवार को मैं ले आता हूं बाज़ार से तुम्हारे पसंद की हर एक चीज ये सिर्फ इसलिए कि जब तुम आओ तो बाक़ी दिन मुझे ये सब लाने के लिए तुमसे दूर न जाना पड़े।
शनिवार को खाना मैं बनाऊंगा जो तुम्हें पसंद होगा, हाँ रोटियां थोड़ी टेडी मेढ़ी होंगी लेकिन मै कोशिश करता हूं कि तुम्हारे आने तक रोटियां गोल बनने लगे।
रविवार के दिन हम उठेंगे देर से वज़ह तुम्हें तो पता ही है कि रात की थकान सुबह के सूरज के निकलने के बाद ही दूर होगा। पहले मैं उठूंगा, चाय अच्छा बनाता हूँ मै तो अपने हाथ से चाय मै बनाऊंगा तुम बेड पर सोती रहोगी।
मैं बना के लाऊंगा और तुम्हें जगा के पीने के लिए कहूंगा, तुम जब चाय की पहली चुस्की लोगी तो ज़रा सा नज़रे घुमा के पूछोगी मुझसे की मिस्टर इसमें शक्कर कहा है। मै तुम्हारे होठों की तरफ इशारा कर के कहूंगा मेरे मीठास का काम तो यहीं करते हैं आप कहो तो हम ले ले ज़रा सा, तुम मुस्कुरा के बोलोगी आप न, सुधरोगे नहीं कभी। मैं बोलूंगा की सुधार बाकियों के लिए बिगड़ना सिर्फ़ तुम्हारे लिए।
आओ जान की अब हफ्तों के सातों दिन भी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।
-शिवम मिश्रा