गुरूर ये जो तेरे अर्शो-आसमान का है।
ये कम नसीब मेरे हौसलो-उड़ान का है।
वो जिसका दे रहा है तू जवाब मनमाना
वो यक़ीनन सवाल एक बेज़ुबान का है।
तवील राह का शिकवा नहीं है इस दिल को
गिला है ग़र तो फ़क़त सांस की थकान का है ।
हदें जो वुसवते-दरिया की तय न हो पाईं
लहर लहर का रवैय्या भी अब उफान का है।
रहेगा ज़ख्म से दिल को ये उम्र भर शिकवा
बयां करे है वो ये तीर किस कमान का है।
दरो-दिवार हवा, फ़र्शो-छत ज़मीनो-फ़लक़
कि बेघरी में गुमां जैसे इक मकान का है।
तू अपने आतिशी लहजे पे यूँ न हो हैरां
फ़क़त तेरा ही नहीं, मर्ज़ ये जहान का है।
भला उसूले-जहाँ बूढ़ा बाप क्या जाने,
यही खयाल नए दौर के जवान का है।
हवाएं ग़र लिए हैं आज तल्ख से तेवर,
मेरे चराग़ को भी शौक़ इम्तिहान का है।
सफ़र ये चन्द ही साँसों का अब रहा “पूनम”
अब इसके बाद का रस्ता तो बस ढलान का है।
-पूनम प्रकाश