डॉ. शबनम आलम
कितना मुश्किल होता होगा
किसी स्त्री को
जिससे वह मुहब्बत करती है
वो साथ होकर भी साथ न हो
कितना दर्द होता होगा
जब वो झांकती होगी उसकी आंखों में
वहां वो खुद को नहीं पाती है
कितनी बेबस होती होगी
जब उसकी सारी अवहेलनाओं के बावजूद
उसे मुहब्बत भरी नज़रों से देखती है
उस पर क्या बीतती होगी
जब वो कहती है
मैं तुमसे बहुत मुहब्बत करती हूं
और, वो कहता है
मैं तुमसे शदीद नफ़रत करता हूं
कितना मुश्किल होता होगा
उसकी नफ़रत के साथ
अपनी मुहब्बत को जिंदा रखना