छठी क्लास में पढ़ते हुए
स्कूल की छुट्टी होने पर
एक शाम घर लौटते हुए
अचानक बीच रास्ते में ही
काले-काले बादलों से भर गया आसमान
और घनघोर बारिश से पट गये सब रास्ते
मैं और मेरा सहपाठी
खुद से ज्यादा किताबों को बचाने की चिंता से भीगने लगे
भागते-भागते
किसी तरह मिली
एक साधारण-से घर के छज्जे तले शरण
सघन बारिश में
भीगते,कांपते,बतियाते
दो अजनबी बालकों की
फुसफुसाहट सुनकर
घर से बाहर निकलकर आयी एक स्त्री
बालकों को भीगते,सिकुड़ते देख
स्त्री के ह्रदय के आसमान में होने लगी ममता की बारिश
ले गयी वह हम दोनों को भीतर
घर के एक सुरक्षित कोने में
सहेजकर रखे दोनों के बस्ते
गीले कपडों का पानी दूर किया
बिस्कुट के साथ पिलायी गरमागरम चाय
बारिश थम जाने पर
गली के मुख्य द्वार तक
विदा करने आयी वह स्त्री
हौसले व विश्वास के
छाते देकर किया हमें विदा
इस घटना को तीस-पैंतीस साल से ज्यादा का समय हो गया है
मैं भूल गया हूँ
उस स्त्री का चेहरा
अब याद नहीं मुझे
वह गली वह मकान
लेकिन! आज भी जब कभी
होती है भीषण बारिश
मैं आसमान को निहारता हूँ देर तक
फिर एक घर
और एक ममतामयी स्त्री की स्मृति में
अपने आप ही
झुक जाता है मेरा शीश
-जसवीर त्यागी