रूची शाही
बहुत घुटन होती है तब
जब जो कहना चाहा और कह न पाए
लड़ना चाहे और चुपचाप रह गए
लगने लगे किस हक से कुछ कहा जाए
जब अख्तियार में कुछ भी न रह जाए
तब दर्द नहीं होता
जाने कैसा महसूस होता है तब
अपनी बेबसी पर जब रो भी न पाए
सब कुछ भूलकर सो भी न पाए
बस खाली सा मन लिए बैठे रहें चुपचाप
और सारे जरूरी काम अधूरे रह जाएं
जब पता ही नहीं हो कि गलती क्या है
और पता हो भी तो सजा सही न जाये
सच बहुत घुटन होती है तब