अंकुर सिंह
हरदासीपुर, चंदवक
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अबकी जो तुमसे बिछड़ा,
जीते जी मैं मर जाऊंगा।
भले रहूं जग में चलता फिरता,
फिर भी लाश कहलाऊंगा।।
रह लो मुझ बिन तुम शायद,
पर, जहां मेरा तुम बिन सूना।
छोड़ तुम्हें अब मैं ना जाऊंगी,
भूल गई क्यों ऐसा कहा अपना?
एक प्रेम तरु के हम दो डाली,
कैसे तुम बिन हवा के टूट गई?
जीना चाहा था तुम्हारे वादों संग ,
फिर तुम मुझसे क्यों रूठ गई?
कभी तुम सुना देती थी कभी मैं,
लड़ रातें सवेरे एक हो जाते थे।
जिस रात तुम्हें पास न पाया,
उस रात मेरे नैना नीर बहाते थे।।
सात जन्मों का है जो वादा,
हर हाल है उसे निभाना।
मिलकर हम खोजेंगे युक्ति,
जग बना यदि प्रेम में बाधा।।
अबकी जो तुमसे बिछड़ा,
आहत मन से टूट गया हूं।
पढ़ रही हो तो वापस आओ,
तुम बिन मैं अधूरा हूं…।।
मांगता हूं गलतियों की क्षमा,
हाथ जोड़ कर रहा कर वंदन।
गलतियों को मेरी बिसरा दो,
ताकि बिखरे ना प्रेम का बंधन।।