स्त्री-जीवन का लिखित आख्यान: प्रतिनिधि कहानियाँ

समीक्षित कृति: प्रतिनिधि कहानियाँ
लेखिका: अंजना वर्मा
हंस प्रकाशन, नई दिल्ली
पृष्ठ: 132

कहानी अति प्राचीन विधा है। समयानुसार इसकी प्रवृत्तियाँ बदलती रहती हैं, जो प्रासांगिक होने के लिए स्वाभाविक भी है। किसी सफल कहानी के लिए ताजगी, नए मुहाबरे, समय-समाज के यथार्थवादी सामयिक दृष्टिकोण, मानवीय सरोकार, अनुभव की गहराई तथा सूक्ष्म निरीक्षण-शक्ति अनिवार्य तत्व हैं। कहानी मात्र एक विधा नहीं है अपितु समय और समाज को समझने की व्यापक दृष्टि भी है।

समीक्ष्य कृति ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ आम जीवन में घटित घटनाओं पर आधारित रचनात्मक सौंदर्य से भरपूर 14 कहानियों का खूबसूरत संकलन है। वरिष्ठ लेखिका अंजना वर्मा कहानी के साथ-साथ अन्य कई विधाओं की सफल साधिका हैं और कई सम्मानों से सम्मानित भी। स्त्री और प्रकृति, उसकी संवेदनाएँ और उसके व्यक्त-अव्यक्त भाव स्वयं में एक कहानी है। स्त्री-जीवन, उसकी चिंताओं-संघर्षों और उसकी आकांक्षाओं को किसी परिधि में बाँधना कठिन होता है। जीवनानुभव से गुजरता स्त्री-जीवन, उनके मानवीय रिश्तों का संतुलन-असंतुलन, दायित्व-बोध और अस्मिता व अस्तित्व के संघर्ष का यह संग्रह, वस्तुतः स्त्री-जीवन का लिखित आख्यान ही है।

पहली कहानी ‘कौन तार से बीनी चदरिया’ उपेक्षित, तिरस्कृत जीवन जीते किन्नर समाज की अशेष व्यथा-कथा है, जहाँ अपनों के दर्द को महसूसना उसकी नियति बन जाती है। विलगाव का दर्द इसका केंद्रीय भाव है।

‘अनारकली’ ज़िंदगी से जूझती निम्न वर्गीय औरत की करुण कथा है, किंतु कहानी के अंत में दीया से कुछ उत्तर न मिलना चौंकाता है। शायद यही अंश कहानी का क्लाइमेक्स बन जाता। ‘इंतजार डॉट कॉम’ की कहानी–दकियानूसी वैवाहिक सोच से संत्रस्त एक नौकरी पेशा लड़की की, कश्मकश भरी ज़िंदगी की दास्तान है। अच्छी कहानी है यह।

‘नंदन पार्क’ गरीब कामगार परिवार के बच्चों से उसका उल्लास छीनना, अमीर लोगों द्वारा उसके जीवन को अहमियत न देने की त्रासद कहानी है, जहाँ बच्चों की हँसी-खुशी, खेल-तमाशा को बंद कर नंदन पार्क बनवाना, ऊँची मानसिकता के लोगों की ओछी हरकत को उजागर करती है। कथा का दर्द दिल की गहराई तक पहुँचने में समर्थ है।

पैसों के पीछे बेतहासा दौड़ में पत्नी/परिवार को भूल जाना आज लगभग जीवन का यथार्थ बन गया है। पैसा ही जीवन हो गया है। प्यार व आनंद जिंदगी से गायब है, इसी त्रासदी को बयां करती ‘हॉर्स रेस’ एक अच्छी कहानी है।

वेश्या की जिंदगी की दुःखती रगों की करुण कथा है ‘लाल बत्ती की आवाज’, जहाँ से एक सकारात्मक संदेश भी उभर कर सामने आता है। समाज को इस संदेश को सुनना चाहिए। ‘सौदा’ मानवेत्तर प्राणी विषयक कहानी है, जो जीवन भर बफादारी निभाता रहा, किंतु स्वार्थी मनुष्य अंततः उसे भी बेच देता है। उसका भी सौदा कर गिरते मानवीय चरित्र का परिचय देता है।

‘सिमरन आंटी’ और ‘रेत का तालाब’ बुढ़ापे के अकेलेपन और उपेक्षित जीवन के असीमित दर्द को अभिव्यक्त करती अच्छी कहानी है। सिमरन आंटी में कोरोना की त्रासदी जन्य पीड़ा का हृदय विदारक चित्रण बहुत कुछ सोचने को विवश करता है। ‘सवाल एक चने की दाल का’ भी कोरोना के भयावह समय की अथाह पीड़ा को अभिव्यक्त करती अच्छी कहानी है और ‘दरिद्र भोज’ भी वृद्धावस्था की मजबूरियों को व्यक्त करती पठनीय कहानी है। संग्रह की शेष कहानियाँ- ‘दबी हुई फाइल ‘, प्रकृति विषयक कथा ‘पेड़ का तबादला’ और ‘कुछ नहीं’ भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि लेखिका ने कुशलता से कहानियों के अंतर्जाल में संवेदनाओं, विवशताओं, मानसिक उलझनों व स्त्री के विविध रंग-रूपों के यथार्थ संसार को अपने अनुभव की गहराई से गढ़ने में सफलता पायी है। निस्संदेह इससे उनकी कहानी-कला और शिल्प का वैभव स्पष्ट हो जाता है। भाषा का प्रवाह सरल व सहज है। मुझे विश्वास है कि उन्हें पाठकों /आलोचकों का प्यार मिल सकेगा। उन्हें मेरा साधुवाद!