स्त्री विमर्श और पंचतंत्र की कहानियां: नीलिमा पांडेय

समीक्षा: नीलिमा पांडेय
असोसिएट प्रोफेसर,
प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश

पंचतंत्र की कहानियों से हम सब वाकिफ़ हैं। बचपन से हम इन्हें सुनते आए हैं और बड़े होने पर नज़ीर देने के लिए इन्हें चुनते भी आए हैं। विष्णु शर्मा की यह कृति अपने आप में अनूठी है। सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास के विश्लेषण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। साथ ही यह हमे वह तलिस्मा भी देती है जिसकी दरकार है कि शिक्षा को बोझ बनाने से बचना चाहिए। न तो छात्र को भारवाहक पशु समझें और न ही ज्ञान को बोझ। ऐसा करने से कुछ भी हासिल होने से रहा। बल्कि जरूरत इस बात की है कि ज्ञान को सहज और सरल बनाये रखा जाए और उसे सरसता से ग्रहण किया जाए। भगवान सिंह द्वारा संकलित पंचतंत्र की कहानियों को एक बार जरूर पढ़ा जाना चाहिए। स्त्री विमर्श के आज के दौर में स्त्रियों के प्रति हमारे समाज की जड़ता को समझने के लिए यह बेहद जरूरी है।

पंचतंत्र की ये कहानियाँ नीतिशास्त्र का अद्भुत संकलन प्रस्तुत करती हैं। हजारों वर्ष पुरानी होने के बावजूद ये आज भी प्रासंगिक हैं। लोक व्यवहार और नीतिशास्त्र की शिक्षा देती ये कहानियाँ प्रकारांतर से हमें उस लोक से भी परिचित कराती हैं जिनके लिए इन्हें रचा गया है। पंचतंत्र मूलतः जंतु कथाओं के माध्यम से नीतिशास्त्र की शिक्षा देता है। किन्तु इसकी कई कथाएं मानव पात्रों के साथ भी लिखी गई हैं। इन पात्रों का अवलोकन हमें अतीत के मानव समाज में झांकने में मदद करता है और प्राचीन समाजिक संरचना को समझने की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

पंचतंत्र के रचियता विष्णु शर्मा ने अपनी कथाओं में स्त्री पात्र काफी सीमित संख्या में रखे हैं। इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य था कहना मुश्किल है। बहरहाल स्त्री पात्रों की कम संख्या के बावजूद वे तत्कालीन समाज के  स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण को बखूबी हमारे समक्ष प्रस्तुत कर गए। इन कहानियों के बरक्स हम जानते हैं कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों को कुल्टा, स्वैरिणी, मायाविनी, कर्कशा, अविश्वसनीय आदि विशेषणों से नवाजा जाता था।

पंचतंत्र की कहानियां स्त्री को प्रायः किसी पुरुष से जोड़कर संबोधित करती हैं । या तो वे किसी की पत्नी हैं या फिर किसी की माँ। यदा-कदा बेटी के रूप में भी उल्लखित हैं। दो स्त्रियों के बीच के सम्बन्ध जैसे माँ-बेटी, सास-बहू, देवरानी-जिठानी, ननद-भावज का पंचतंत्र में कोई उल्लेख नहीं है। संभवतः नीतिशास्त्र पर केंद्रित पंचतंत्र का स्त्रियों के आंतरिक संसार से कोई सरोकार नहीं था।

स्त्री पात्रों का सर्वाधिक उल्लेख पत्नी के रूप में मिलता है। पंचतंत्र की अधिकांश पत्नियां नकारात्मक चरित्र वाली हैं। उन्हें कामातुर व्यभिचारिणी स्त्री के रूप में चित्रित किया क्या है, साथ ही उन्हें नियंत्रण में रखने की सलाह भी दी गई है। खास बात ये है कि पंचतंत्र के लगभग 200 पाठान्तर उपलब्ध हैं, जो 50 अलग-अलग भाषाओं में हैं। स्त्रियों को लेकर ये सभी पाठान्तर एक मत हैं। स्त्री सम्बन्धी उनकी धारणा में अद्धभुत समानता है।

(पुस्तक का नाम : पंचतंत्र की कहानियां/ संकलित: भगवान सिंह /प्रकाशन: नेशनल बुक ट्रस्ट/ पृष्ठ: 345 / ISBN 81-237-1374-6)