‘राव’ शिवराज पाल सिंह
जयपुर-इनायती
इश्क बुरा है बुरा है करना इश्क
फिर क्यूं किए जा रहे हैं इश्क।
हस्बे-मामूल नहीं इश्क करना
आसाँ नहीं दिल में बसे रहना।
हर धड़कन पुकारे नाम उसका
नयन दरस करते बस उसका।
क्यों देते लोग हिदायत इतनी
व्यर्थ लगती चकल्लस उतनी।
दरिया एइश्क में जो डूब जाता
उस को फिर सुनाई नहीं आता।
जब मर ही गए हम किसी पर
तब फिर जीना कहां मयस्सर।
हवस को नाम देकर इश्क का
दिए जा रहे खुद को भी धोखा।
सच्चे इश्क को कद्र्दां न मिलता
कद्रदां को सच्चा इश्क न मिलता।