रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
बरसता नहीं है पानी, बादल है कारे कारे
होंगे कैसे साकार सपने, दिल में बसे जो हमारे
बादलों में गरज तो मिली है बिजली की चमक भी खिली है
बिजली है दिलासा वह मन को, हवाएं जो ठंडी चली है
गुनगुनाता रहा हूं हमेशा, गीत लिखे हैं जो अभी तक सारे
कैसे होंगे साकार सपने, दिल में बसे जो हमारे
रह गया न चमन अब सुहाना, लगता है सब कुछ वीराना
चैन आता नहीं है मुझे अब, जिंदगी का रहा ना ठिकाना
लेके आजा संदेशा ए मेघा, हम तो तड़पे मोहब्बत के मारे
कैसे होंगे साकार सपने, दिल में बसे जो हमारे
भीग जाती है पलकें हमारी, याद आती है जब-जब तुम्हारी
आ जाओ सजन जो यहां तुम, खिल जाएगी बगिया यह सारी
वह मंजिल मिलेगी तभी तो, दिल में हसरत यही है हमारे
कैसे होंगे साकार सपने, दिल में बसे जो हमारे