Friday, December 27, 2024

हेयर-ऑइल: वंदना सहाय

वंदना सहाय

आज यामिनी जी बहुत खुश हैं- उनका वीसा बन कर तैयार हो गया है, अब वे कुछ दिन अपने बेटे के पास विदेश में रहेंगी। बहुत झेल लिया उन्होनें अकेलेपन का दंश। 

उन्हें याद आने लगीं वे सारी बातें- कैसे पति के सीमित पेंशन में उन्होनें बेटे को पढ़ाया-लिखाया। कम उम्र का वैधव्य उन्हें कोमल लता से एक सख़्त दरख्त बना गया था। बेटा उस दरख्त के घोंसले में तब तक रहा जब तक उसके पंख उड़ने लायक न थे। पंखों में ताक़त आते ही वह उड़ चला- सात समुन्दर पार, दाना-पानी की तलाश में…

पोती को देखने की प्रबल उत्कंठा का मज़ा वे यह सब बातें याद कर ख़राब नहीं करना चाहती थीं। 

विदेश पहुँचते ही उन्होनें अपनी पोती को सीने से लगा लिया- जैसे जन्नत मिल गई हो। उन्हें लगा कि ज़िन्दगी पूरी तरह से ख़त्म नही हुई है, अभी भी जीने का मकसद बाँकी है। 

एक दिन वे पोती के लिए दूध का गिलास ले कर उसे पिलाने के लिए उसके शयन-कक्ष की ओर जा रहीं थीं कि उन्होनें उसे कहते सुना- “मॉम, हाउ लॉन्ग डू आई हैव टू शेयर माय रूम विद हर? स्मेल ऑफ़ हर हेयर-ऑइल इस सो ऑबनॉक्सियस!” (कितने दिनों तक मुझे अपना रूम उसके साथ शेयर करना पड़ेगा? उनके बालों का तेल मुझे विकर्षित करता है।)

उनके शयनकक्ष की ओर बढ़ते कदम पीछे लौट गए और मन स्वदेश लौटने की तैयारी करने लगा।

ये भी पढ़ें

नवीनतम