हिंदी पर अभिमान मुझे: डॉ निशा अग्रवाल

डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर

हिन्द देश के हिंदी भाषा, जिस पर है अभिमान मुझे।
हर दिल की धड़कन है हिंदी, जगत में इसे सम्मान मिले।।

देश का गौरव ,भविष्य की आशा, जनता की भाषा हिंदी।
जैसे सुहागन के मस्तक पर, गौरव की सजती बिंदी।।

हम सबने अपनी वाणी से, हिंदी का रूप तराशा है।
जान बने हिंदी भाषा, यही मेरी अभिलाषा है।।

कबीर दास ने अपनाकर, मीरा ने इसे मान दिया।
आज़ादी के हम दीवाने, हिंदी को सम्मान दिया।।

फिर भी क्यों हम कतराते, हिंदी में परिचय देने से।
क्यों छोटा हम खुद को समझते, हिंदी में बातें करने से।।

अरे! क्यों सोचो अंग्रेजी बोलेंगे, तभी बनेंगे महान हम।
क्यों भूल जाते है हर पल, की गर्वीले हिन्दुस्तानी है हम।।

क्यों करते है सम्मान हिंदी का, केवल 14 सितंबर को ही हम।
क्यों करते रहते है हर पल, हिंदी का अपमान हम।।

क्यों करते है,14 सितंबर को ही, हिंदी बचाओ अभियान की बातें हम।
क्यों देते अंग्रेजी में नोटिस, आज के दिन हिंदी में हम।।

अरे!क्यों भूल गए कि इस अंग्रेजी ने ही वर्षों बनाया गुलाम हमें।
हिंदी भाषा है वीर प्रसूता, जिसने दी जीवन रेखा और काल जीत की सौगात हमें।।

रिश्ते नाम के अर्थ बदल रहे, देशी घी को बटर बोल रहे।
मात-पिता, मोम डैड हो गए, बाकी सब रिश्ते आंटी अंकल हो गए।।

दोस्तों, अंत में.. मैं सिर्फ दो पंक्तियां और कहना चाहती हूं।
कलम रोककर शब्दों को अब आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ।।

हिंदी भाषा का संरक्षण और हिफाज़त चाहती हूँ।
हिंदी भाषा का संरक्षण और हिफाज़त चाहती हूँ।।