रंजीता सिंह ‘फ़लक’
मुझे लगा था कि
चांद ज़मीन पर नहीं आता
सितारे जुल्फों में टाँके नहीं जाते
रात का तिलिस्म नहीं होता
ख़्वाब जादू नहीं जगाते
बादलों के पार से
कोई चल के नहीं आता,
मन के आँगन में
गुलमोहर नहीं गिरते
मुझे लगा था
कि प्रेम की दुनिया
बस, किताबों और
ख़्वाबों तक ही होती है
पर अब जाकर
मैंने जाना है कि
किताबों का प्रेम
महज एक फ़लसफ़ा नहीं
प्रेम
ऐसे भी अचानक
दबे पाँव
जीवन में आ जाता है
कि हम उसे देखकर
हैरत में पड़ जाते हैं
और
अपनी पूरी चेतना को
टटोलने लगते हैं
शायद एक भ्रम-सा
शायद एक स्वप्न-सा
शायद एक चांद-सा
उतर आता है
मन के कोरे आँगन में
और जगमगा उठती है
तमाम मन की दिशाएँ
ओह,
ये अनुभव भी
कितना सुन्दर
कितना सपनीला है,
कितना ख़ूबसूरत है
प्रेम को पाना
और समेट लेना
सदा के लिए