रूची शाही
रोने को दुख कम नहीं थे मेरे पास
पर तुम्हारी गोद में सिर रख कर
रोने से वो दुख आधे होते गए
तुम ने हमेशा कहा मैं हूं और रहूंगा
तुम्हारे कहने भर से
मैं तुम्हारा साथ अनुभव करने लगती
कभी अकेले होने ही नहीं दिया तुमने मुझे
हमेशा छोटी बच्ची सा
लगाए रखा अपनी छाती से
पुरुष के हृदय में भी वात्सल्य की
गंगा बहा करती है
ये तुम्हारे हृदय के स्पंदन ने ही बताया मुझे
कोई शिकायत नहीं की तुमने मुझसे
जब जैसे मिली जितना मिली
सहर्ष स्वीकार लिया तुमने
आँखें भिगोती है मेरी
तुम्हारा ये कहना कि
सुन हफ्ते में एक बार हाल-चाल दे दिया कर
फिक्र लगी रहती है तुम्हारी
तुम्हारे स्नेह को शब्दों में बांधना
बहुत मुश्किल है मेरे लिए
क्योंकि तुम्हारे अपरिमित स्नेह के आगे
ये शब्द बहुत बौने से हो जाते हैं