सुमन सुरभि
प्रेम का कोई रूप नहीं,
ये तो बस…
मुस्कुराते हुए चेहरे में दिख जाता है,
करुणामय हृदय में बह जाता है,
उम्मीद भरी आँखों में उग जाता है,
ममता के आँचल में पलता है,
कभी आँसू बन के भी निकलता है,
दो अंजानों में भी पनप जाता है,
न जाने कब ये दिलों में समा जाता है,
रूप बदल बदल के ये मिलता है,
रूपरेखा नहीं इसकी,
अनंत में विचरता है,
असंभव इसकी व्याख्या है…
नहीं पता मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ?
जहाँ प्रेम है… मैं वहीं हूँ