वंदना मिश्रा
तुम गर्व कर लो कबीर
अपनी उजली चादर का
पुरुष थे न ज़िम्मेदार
अपने और अपनी
चादर की स्वच्छता के
नारी होते तो समझते कि
कैसे जबरन
पोंछ दिए जाते हैं
मटमैले गंदे हाथ
साफ़ उजली
छुपा कर रखी चादर में,
और इतने पर भी संतोष न हो
तो नुकीले वो हाथ
नोंच डालते हैं
आत्मा तक
लहू लहान आत्मा
और मैली चादर ले
कैसे गर्व करे लोई!
इसीलिए
मौन बनी रही