घर की तलाश में: प्रार्थना राय

ज़िन्दगी गुज़र रही
घर की तलाश में
वो मुक़ाम भी हासिल
ना हो सका सुकून की आस में

क्या बताएं किसी से हम
गुजरें हैं कहाँ कहाँ से
परेशानियों की दरिया से
हम निकले हैं नहा के

दास्तां हकीक़त की
सुन लो ऐ मेरे खुदा
मन्नत वाली दुआ भी
अब जा रही है खाली

तनहाई भरी रातों में
छुप छुप के रो लेते हैं
अरमानों का जनाजा
अपने कांधों पे ढो रहे हैं

यारों की यारी देखी, दुश्मनों के
दुश्मनी से सबक सीखा
अपनों का वार सीधे
दिल में उतर गया

बेचैनी की बिजली
दिल पे आ गिरी
अदावत का चलन
उन्होंने सीखा कहाँ से

हमशक्ल बन घूमते वो नजर आये
जान पाना बहुत कठिन हुआ
खुद की शिनाख़्त हुई मुश्किल
भ्रमित हर एक दिन हुआ

तबाही मेरे रवादारी का
आवारगी में बदल गया
जा बैठे मैयखाने में
भड़कते सवालों का शिकार हो गये

खुद की पहचान को
तरस रहे हैं हम
बसर कर रहे हैं
खानाबदोश ज़िन्दगी

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश