हे! विधाता
हे विधाता !
किसी के जीवन को प्रकाश से
भर दिया तो
किसी के जीवन में दिया ही नहीं दिया
दिया किसी के हाथ कलम तो
किसी के हाथ हथौड़ा,
प्रभू! क्यूँ तूने असहाय का ही
दामन छोड़ा?
त्रस्त जीवन को झेल नहीं पाती
भूखी, प्यासी, नंगी जनता
जन्म देने से पहले अब कतराती है
देश की हर माता
यह मेरे ही देश में क्यूँ है होता?
हे विधाता!
देख तेरी सृष्टि का, है मानव बैठा गला दबाए
हो गया है दिग्भ्रमित, कर वही जो मन को भाए
हालत यह अब कि श्वास भी न लेने पाए
जब हम सब हैं तेरे ही साए
कहाँ जाए? क्यूँ कर पछताए?
हे विधाता !
इंसानियत बन गयी छद्म वेशी, आ जाती है मूड़ पाकर
जाति–धर्म तो निर्लज्ज हो चली, कट्टरपंथी के नाम पर
हैवानियत पनप रही तेरी जहान में,
हो क्योंकर तुझे स्वीकार?
क्यूँ भूल गए हम, तेरी सत्ता पर हमारा न कोई अधिकार
तुझ बिन कुछ संभव नहीं, सुन ले मेरी यह पुकार
तृप्त कर दो मानव तृष्णा, लेकर फिर कोई अवतार
हे विधाता!
-एच के रूपा रानी