पूर्णिका: मनोहर सिंह चौहान मधुकर

मिलते ही नजर मुझको वे भा गए।
धीरे-धीरे ख्वाब में मेरे आ गए ।।

कैसे गुजर हो बशर उनके बिना।
अब दिल के करीब वे मेरे आ गए।।

आज तक उल्फत से दिल अनजान था।
पहली नजर में चैन मेरे चुरा गए।।

एक दफा जो देखा प्यार से मुझको।
नशा सा मुस्कान से मेरे चढ़ा गए।।

पलके बिछा दी है उनकी राह में।
क्यों इस दिल में तड़प मेरे जगा गए।।

पूछे मनहर मीत कैसे हो सनम।
हंसकर गुलाब वे मेरे दिखा गए।।