वे पुराने घर: वंदना सहाय

वंदना सहाय

नहीं दिखाई देते अब
पुराने समय वाले वे कुछ घर
चूने पुते और बड़े आँगन वाले

विनम्रता का लिबास ओढ़े
सबको आने का न्योता देने को उत्सुक

घर का दरवाजा कभी ताले का गहना
नहीं पहनता था
बारिश में कई जगह घर में
मखमल-सी काई की छोटी कालीन भी बिछ जाती

साधारण घर जो डिजाइनर नहीं था
चूल्हे की लकड़ी से निकले धूएँ से परहेज नहीं करता था
क्योंकि उसके वस्त्र महँगें रंगों में
नहीं रंगे रहते
और हर साल उसे चूने की चाशनी ही भाती

‘मालिक का कमरा’ कभी भी मेहमान के कमरे में तब्दील हो जाता

घर की शहतीर वाली ऊँची छतें
वातानुकूलक-सा काम करतीं

इनमें संयुक्त परिवार रहता
और ढेरों खुशियाँ बस्ती थीं
हँसते-बतियाते लोगों के बीच
अकेलापन जाने से डरता

खुले दरवाज़ों से कभी
अप्रिय बात बाहर नहीं जाती
बड़ी और सूनी दिवारों पर बच्चे
वर्णमाला सीखते

एक नीम वृक्ष भी अपनी सहस्र भुजाओं से
सब पर आशीष लुटाता

पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी को बहुत कुछ सिखाती
और नयी पीढ़ी आने वाली पीढ़ियों के लिए
बहुत कुछ संजोती