नेत्रदान: वंदना सहाय

वंदना सहाय

“दयाशंकर, कितनी बार तुझसे कहा कि इस नेत्रदान के फार्म को लेकर मेरे पास मत आया कर। माना कि मेरी आँखें बूढ़ी हो चलीं हैं और मेरे मरने के बाद मेरी आँखों से कोई दूसरा देख सकेगा। पर मेरी आँखों ने शुरू से बहुत दुःख देखे, जब मेरे बच्चों के पिता उन्हें छोड़ कर स्वर्गवासी हो गये। अब वे पढ़-लिख कर बड़े आदमी बन गये हैं। कुछ दिनों बाद मैं भी यहाँ से उनके पास चली जाऊँगी। अपने इन्हीं आँखों से मैं उनका मुख और सुख देखूँगी। वहाँ उनके साथ बिताये हुए प्यार और स्नेह के पलों को आँखों में भर मैं मरना चाहती हूँ। मैं स्वार्थी ही सही, मुझे अपने आँखों के उजाले से दूर नहीं होना। मुझे माफ़ कर…” बूढ़ी चाची बिफर उठी।

उस दिन दयाशंकर फार्म लेकर लौट गया पर, जल्दी ही उसे किसी ने आकर खबर दी कि चाची बच्चों के पास गयीं थीं, पर अब लौट आयीं हैं। उसे बुलाया है, फार्म लेकर, वे नेत्रदान करना चाहती हैं।