सुप्रसन्ना झा
इतने दिनों बाद आज तुम्हारा खिलना
हमें बहुत है भाया
कभी इन हाथों से हमने था तुम्हें
इस जमीं पे लगाया
अलसुबह हररोज तुम्हें इन हाथों से
सींचा करती थी
कड़क धूप से तुम्हें अक्सर बचाया
करती थी
बिल्कुल इक शिशु की तरह
कभी तेज बारिशों से
कभी कड़क धूप से तो
कभी आँधियों के थपेड़ों से
हाँ मेरा ममत्व तुम्हें
कभी दुख मे देखना नहीं चाहा
हर पल एक ठंढी छाँव बनी रही
लेकिन तुम्हें धूप में भी रहना सिखाया
बारिशों को झेलना सिखाया
आँधियों में स्थिरता
ताकि हर परिस्थिति में तुम बेझिझक
खिल सको, खुश रह सको
आज सुबह-सुबह बगीचे में तुम्हें
इस तरह मुस्कुराते
ठंडी-ठंडी हवाओं में लहराते देख
बहुत खुश हुई मैं
मेरा प्रतिदिन का मेहनत सफल हुआ
मेरा ममत्व मत पूछो कितनी निहाल हुई मैं
तुम्हें इस तरह खिली देख आज बहुत खुशहाल हुई मैं