संजय अश्क
बालाघाट
तेरे बगैर दुनिया की कोई खुशी अच्छी नहीं लगती
अब तो मुझे भी मेरी ये मायूसी अच्छी नहीं लगती।
जुदा होकर तुझसे, तुझसे ही जुड़ा हुआ है एहसास
तू खुश है तो मुझे भी ग़मकशी अच्छी नहीं लगती।
ना खुलकर हंसना है, ना ही जी भर के रोना होता है
इश्क की मुझे दोस्तों ये बेबसी अच्छी नहीं लगती।
माना की समय बुरा है कोई रास्ता सूझ भी नहीं रहा है
लेकिन जीना तो पड़ेगा खुदकुशी अच्छी नहीं लगती।
एक रोज पूरा पी जायेगी, रोज-रोज पीने की आदत
हद से ज्यादा की संजय मयकशी अच्छी नहीं लगती।