चित्रा पंवार
इनके चांद से मुख पर
बात बेबात खिल उठते
कुमुदिनी के फूल
दूधिया दांतों की रंगत से
टिमटिमाने लगते हैं
आकाश के बुझे उदास तारे
इनकी आंखों में दमकता है
सूरज का कभी न मिटने वाला तेज
हवा के पंख लगाए
उड़ती फिरती हैं
ख्वाबों के सतरंगी रथ पर
ये कभी भीग जाती हैं प्रेम की उष्णता से
तो अगले ही पल स्पर्श की लाज से
हथेलियों में भर जाती है बर्फ़ की ठंडक
फरवरी, अगस्त होने से पहले
अक्टूबर होती हैं
प्रेम में पड़ी लड़कियां