वंदना पराशर
अब तो आईना भी
मुझसे झूठ बोलता है
कुछ पूछो तो
नज़रें झुका लेता है
ये अदा नहीं है
बेईमानी है उसकी
खुद से ही
खुद को बचा लेने की
* * *
यह जिंदगी
मौत से
उधार ली है मैंने
वह सामने खड़ा था मेरे
मुझसे साथ चलने को कहा
चंद रोज़ की मोहलत मांग ली है मैंने
सोचता हूं कि
इन दिनों में
जिंदगी के मायने
समझता चलूं