डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर राजस्थान
मां बाप की लाडली होती हैं बेटियां
फिर भी बेटों सा प्यार ना पाती हैं
आए गर मां बाप की आंख में आंसू
तो दर्द से निवृत्त वो ही कराती हैं।
बांट लेती हैं मां बाप के हाल ए गम को
पर मुख से उफ्फ तक ना वो सुनाती हैं
क्यों भूल जाते हैं सब लोग ये बातें
बेटियां पिता के घर अपने भाग्य का खाती हैं।
विदा होते ही बेटियां मायके से अपने
हमेशा के लिए पराई हो जाती हैं
सजाया था कभी अपने घर को बेटियों ने
वो एक दिन मायका कहना भूल जाती हैं।
पिता के घर में पराया धन होती हैं बेटियां
पराए घर से आई है ससुराल में यही सुनती हैं
सारे हक छीन लेते हैं जब बेटे
फिर क्यों माताएं बेटियों को जन्म देती हैं।
नहीं मांगती बेटी अपने मायके से कभी कुछ भी
फिर भी मायके में बेटियां बोझ बन जाती हैं
लूटा देती है जान ,भाई को विपदा में देख
सारी दुनियां से संघर्ष करने चली जाती है
निभाती है मस्तक पे टीके की रस्में
कलाई को स्नेह के धागे से सजाती है।
बुलाते भाई भाभी तो दौड़ी चली जाती है
टॉफी खिलौने प्यार सब भाई पर लुटाती है
नाम सुन मायके का झूम सी वो जाती हैं।
पाते ही भाई भाभी को गले वो लगाती हैं।
ममता स्नेह के हक से ही
बेटियां मायके जाती हैं
ना मिले स्नेह बेटियों को,
फिर भी अपार स्नेह मायके में वार जाती हैं।
ससुराल तो कभी होता ही नहीं उनका
मायके से भी एक दिन हक छिन जाता है
कैसे रखे दहलीज पे कदम अब ये बेटियां
उनका सजाया सारा संसार तो बिखर जाता है।
ममता स्नेह का हक रखती है बेटियां
दौलत की भूखी कभी नहीं होती बेटियां
खुद भूल जाती हैं जीना ये लेकिन,
दुनियां को जीना ये ही सिखाती हैं।
त्याग समर्पण को मूरत ये होती
तभी तो सृष्टि की रचनाकार ये बन जाती हैं
दर्द का दरिया छुपा दिल में ये तो
दुनियां को हंसाना ये ही सिखाती हैं।
गर्व है हमको कि हम बेटियां हैं
गर्व है हमको कि हम बेटियां हैं।