रूची शाही
अजब सितम है कि भरा नहीं मन
कि अब तक आजमाते हो मुझको
तुम्हें लिखकर भला क्या जताना
तुम पढ़कर भूल जाते हो मुझको
🟦 🟢 🟦
तुम्हारा होना न होना किस काम का है
जब मैं तूफानों में भी तन्हा खड़ी हूँ
मैं कांटा नहीं हूँ फिर भी न जाने क्यों
तेरी आंखों को बहुत चुभ रही हूँ
🟦 🔴 🟦
करके जिद राहों में मुझसे मिला तो न कर
मिलता है तो मिल खुशी से, गिला तो न कर
चुभती हूँ सबको यहां मैं कांटे की तरह
मुझको तू फूल समझने की खता तो न कर