वंदना पराशर
[1]
वो कुछ पुराना सामान था
कल, फेंक आया था जिसे
कबाड़ समझकर
आज, ले आया हूं उसे
उसकी अहमियत जानकर।
[2]
रसोई घर में
मां अब भी
पुराने चावल को
संभालकर रखती है।
[3]
आंधी में
वही पेड़ गिरते हैं
जिनकी जड़ें
कमजोर होती है।
[4]
बाज़ार में
रिश्तों को
बिकते हुए देखा है
वो मां थीं जिसका
कोई खरीददार नज़र नहीं आया।