समीर द्विवेदी ‘नितान्त’
कन्नौज, उत्तर प्रदेश
मन में सोचूं वो जान जाती है
मां कहां से ये ज्ञान लाती है
रोटियां कम अगर जो पड़ जाएं
एक मां ही है कम जो खाती है
दौड़ आती है फिर भी सुन के आवाज
चल नहीं पाती लड़खड़ाती है
फ़िक्र-ओ-गम सारे दूर कर देती
हाथ वो सर पे जब फिराती है
सब पे खुशियां निसार कर के खुद
मुस्कुराहट से गम छुपाती है