रूची शाही
मैं चाहती हूं टटोलो तुम मुझको
मैं अब भी बाकी हूँ
तुम्हारे लिए बहुत सा प्रेम लिए
माना बहुत साल बीत गए हैं
पर वो साल जिये नहीं गए हैं
समय का तेज बहाव
बस जैसे तैसे सब बहाते ले गया
पर कुछ चीज़ें शुरू में ही
गठरी बांध के रख दी थी मैंने
मेरी उम्मीदें, विश्वास, प्रेम
सब कुछ मन के तहखाने में
तब तुमको जरूरत नहीं थी इनकी
बस दुनिया की नजर से देखते
और तय करते थे तुम मुझे
पर अब अगर अपना
नजरिया मिल जाये तुम्हें
तो मैं चाहती हूँ
तुम पढ़ो मुझे, तुम देखो मुझे
कि कविताएं लिखने वाली औरतें भी
कितनी खूबसूरत होती हैं