डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
मैं जिंदगी की राह में बढ़ती चली गई
मैं दरकिनार मुश्किलें करती चली गई।
देखे हैं मेंने डगमगाते झूठ के कदम
सच का हाथ थामे मैं बढ़ती चली गई।
सफाई से बोलते हैं झूठ आज यहां लोग
जिंदगी के सच से मैं लड़ती चली गई।
देखा है मेने झूठ को करते हुए गुरूर
सच को ही साथ मैं लिए दृढ़ ही खड़ी रही।
माखन भी झूठ से ही लगाते हैं यहां लोग
कड़वी दवाई सच की पिलाती चली गई।
रिश्ते निभाएं दिल से कभी झूठ से नही
कर्म पथ पे सच के साथ चलती ही मैं गई।
झूठ से होती हैं दिलों में भी दूरियां
चली सच की राह दूरियां मिटाती चली गई।