समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज, उत्तर प्रदेश
ज्यों खाने पहुंचे प्रभु,
शबरी मां के बेर
मुझ तक आने में नहीं
करना उतनी देर ।।
ना ही मुझमें भक्ति है,
ना ही मुझमें शक्ति
राम मुझे भी दीजिए,
केवट सी अनुरक्ति
राम विभीषण के सरिस,
दो शरणागत भक्ति
प्रभु हनुमत सी दीजिए,
चरण कमल आसक्ति
जनमन के आराध्य हैं,
पुरूषोत्तम श्री राम
सहस नाम के तुल्य है,
राम मात्र लघु नाम
अब लोचन हुइहैं सुफल,
बाल रूप लखि राम
नव्य, भव्य औ दिव्यतम,
श्री अयोध्या धाम