समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज, उत्तर प्रदेश
चेहरा उनका हो गया, स्वयं लाज से लाल ।।
अब मलना बेकार है, इस पर रंग गुलाल ।।
होली में मिलकर गले, मेटें सभी मलाल ।।
प्रेम मार्ग पर पग रखें, लेकर रंग गुलाल ।।
प्रीति का गाढ़ा रंग औ, शान्ति का होय अबीर ।।
अमिट प्रेम से मन रंगें, ऐसा भीगे चीर ।।
भूले बिसरे मित्र ने, भेजा खत में रंग ।।
हमने भी अति प्रेम से, लगा लिया निज अंग ।।
भावज रंग लगायिके, हँसे ठहाका मार ।।
शक्ल हुई लंगूर सी, शर्माएं सरकार ।।
मिलने चली प्रभात से, जब फाल्गुन की धूप ।।
सुर्ख गुलाबी हो उठा, लाज से उसका रूप ।।