प्रार्थना राय
रिश्तों में मिला के रंग प्रेम का मैं तानाबाना बुनती हूँ
दुनिया के दिखावे पर ना जाकर वास्ता सबसे रखती हूँ
दर्द से कर किनारा, संकट में भी आशाओं संग चहकती हूँ
धूप दुखों की हो चाहे तेज कितनी, हमेशा हंसती रहती हूँ
जीवन के इस संग्राम में नहीं भय मुझे किसी हार का है
मौन साधे मैं सर्वहित में हर जीत न्यौछावर करती हूँ
चार दिन के जीवन में तुमको सब कुछ बटोर लेना है
मैं काल की चाल और नीयती का हर खेल समझती हूँ
इस नश्वर संसार में कौन अपना है और कौन पराया
मैं तो अनंत हूँ, शक्ति हूँ, सृष्टि के कण-कण में बसती हूँ
माना ना भेद कभी भी, सब को अपना कुटुंब ही समझा
इसलिए धरती के तृण से लेकर तारों में मैं ही दमकती हूँ