उनकी आहट को में,
दूर से जान लेता हूं,
उनकी सांसों की महक,
यूं ही पहचान लेता हूं
एक घड़ी दो घड़ी,
जब भी मिले मुझको,
अपनी गलतियां मैं,
खुद ही मान लेता हूं
सोचता हूं कभी जिंदगी,
रूठ न जाए मुझसे,
इसलिए हर घड़ी,हर वक़्त,
मैं मन को बांध लेता हूं
आते तो है छोटी मोटी,
गिले और शिकवे,
पर उन लम्हों को भी,
लगाकर सीने में थाम लेता हूं
पुराने जख्मों को कुरेदकर,
भला किसे शुकून मिला है,
बेबुनियाद बातों पर बहस देख,
न की गई गलतियां मान लेता हूँ
जयलाल कलेत