Monday, November 25, 2024

सबके घर‌ दीपावली: अंजना वर्मा

अंजना वर्मा
ई-102, रोहन इच्छा अपार्टमेंट, भोगनहल्ली,
विद्या मंदिर स्कूल के पास, बेंगलुरु-560103

मनोज सुबह-सुबह अपने सिर पर मिट्टी की दियरियों की टोकरी लिए ऊँघती गलियों में फेरी लगाता रहा। ऊंचे स्वर में बोलता रहा-“दीपावली के दीये ले लो.. दीपावली के दीये ले लो।”

टोकरी-भर मिट्टी के दीपकों का भार कम नहीं था। इतना भार सिर पर लेकर भटकने के बावजूद बहुत कम दीये बिके, जबकि वह सैकड़े के हिसाब से बहुत सस्ता बेच रहा था। जब धूप तेज हो गई तो वह थक गया और निराश होकर घर लौट आया। जान गया कि अब इससे अधिक दीपक नहीं बिकेंगे। आजकल मिट्टी के दीये खरीदता ही कौन है? सबको तो बिजली के रंगीन जगमगाते बल्ब चाहिए, जिन्हें लगाना भी आसान है और जलने पर जुगनू की तरह जगमगाने लगते हैं। मिट्टी के दीये अब पूछता ही कौन है? पत्नी के हाथ में कुछ नोट पकड़ाते हुए वह थककर बैठ गया।

उसकी पत्नी सुखिया ने पूछा, “क्या हुआ? दियरियाँ नहीं बिकीं क्या?”

तो उसने कहा, “कौन खरीदेगा? छोड़ दे, ऐसा सवाल मत कर। भूख लगी है जोरों की। खाना दे। क्या बनाई है?”

पत्नी ने कहा, “बनेगा क्या? वही, जो रोज बनता है। रोटी तरकारी।”

मनोज हाथ-मुँह धोकर सूखी रोटी सब्जी के साथ चबाने लगा।

पत्नी ने कहा, “सुनो, ये जो मिट्टी के कुछ बर्तन बचे हुए हैं, ये कितने पुराने हो गए हैं। इन्हें कोई खरीदने नहीं आया।”

मनोज ने कहा, “अब तुम्हारे मिट्टी के बर्तन कौन खरीदेगा? तरह-तरह के स्टील के बर्तन बाजार में मिल रहे हैं। उन्हें छोड़ मिट्टी के बर्तन की ओर कोई देखेगा भी?”

“तो दूसरा कोई धंधा क्यों नहीं करते? ऐसे कैसे चलेगा?”

“दूसरा कुछ क्या करूँ? बाबूजी ने यही सिखाया। हमें दूसरा कोई काम आता ही नहीं ,जो हम दूसरे धंधे में लगें?”

शाम हो रही थी। मोहल्ले में चारों ओर दीपावली की तैयारी हो रही थी। दीप तो कम ही जल रहे थे। अधिकतर घरों में रंगीन बल्ब भुकभुकाने लगे थे और पटाखे की कान फोड़ने वाली आवाज आसमान में भड़ाम-भड़ाम करके जब-तब गूँज उठती थी।

सुखिया के घर में दीपों की कमी नहीं थी। एक कोने में दीपों का ढेर उपेक्षित पड़ा हुआ था। लेकिन घर में दीपावली मनाने के लिए पर्याप्त तेल नहीं था। हारकर उसने पाँच दीपक लक्ष्मी जी के सामने जला दिये और हाथ जोड़कर धन के लिए प्रार्थना करने लगी। जिसके पूर्वज युगों-युगों से समाज को उजाला बाँटते आए, आज उसकी संतति की झोपड़ी अंधेरी थी।

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