डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
सुहाना सा सफ़र है इस ज़िंदगी का
खुशियों के तरन्नुम में छिपा गम ज़िंदगी का
ऐ मन! जरा राह को मंजिल बनके देख ले
हंस हंस के गुज़र जाएगा ये वक्त ज़िंदगी का
ज़रा यादों के मंज़र से बाहर तू झांक
लेखा जोखा ज़िंदगी का रख दे तू तांक
मायूस ना बना ये जिंदगी पल में निकली जाय
हर सुबह स्वर्णिम सी निहारे सिर्फ तेरी ही राह
मिलती है ज़िंदगी जीने को एक बार
हो अच्छा या बुरा, मुस्कराओ हर बार
नहीं कुछ अपना इस जिंदगानी में
ईश्वर ने दी है जिंदगी, उसी का करो सत्कार