कभी लाज की
कभी चाल-चलन की
कभी रहन सहन की भी
होती है सीमा
कभी वाणी की
कभी ग़ुरूर की
मर्यादा की भी
होती हैं सीमा
सीमामें बंधकर ही
निभता है ।
जहां में हर रिश्ता
सीमा न हो तो
बहक जाता हैं
रिश्ता
सीमामें रहकरही
निश्चल बहती है सरिता
टूटते है तट बंध तो
तबाही लाती है सरिता
सीमा बंधन नही
अपनी मर्यादा का
भान कराती
एक जिम्मेदारी का
भाव है सीमा
गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान