समीक्षा- भावना सक्सैना
पुस्तक- गुलाबी गलियारे- संस्मरण
लेखिका- डॉ.अंजु दुआ जैमिनी
पृष्ठ संख्या- 116
प्रकाशक- अयन प्रकाशन, वर्ष 2023
मूल्य 280 रुपये
सदा हँसती-मुस्कुराती, चहकती, आत्मविश्वास से लबरेज़, न जाने कितनी मुस्कानों का कारण, फरीदाबाद की प्रतिष्ठित साहित्यकार जो कुछ वर्ष पहले अपनी शर्तों पर लेखन का ध्येय ले सरकारी सेवा के वरिष्ठ पद को अपनी इच्छा से अलविदा कह चुकी हैं… डॉ.अंजु दुआ जैमिनी ने वर्षों पहले, पहली मुलाकात से ही मुझे प्रभावित किया है। हाल ही में अयन प्रकाशन से प्रकाशित उनकी संस्मरणात्मक पुस्तक गुलाबी गलियारे अतीत के पन्नो को टटोलती बेहद रोचक पुस्तक है जो लेखिका के जीवन में एक झरोखे की भांति तो खुलती ही है, साथ ही समाज के कई पक्षों पर संजीदगी से सोचने को विवश करती है, कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है तो संस्मरणों से गुजरते हुए जीवन दर्शन भी रेखांकित कर जाती है। वह लिखती हैं कि कॉलेज में एक ही प्रश्न उनके मन मे उठता था कि मेरा जन्म किस काम के लिए हुआ है।
45 टुकड़ों में जीवन के खट्टे- मीठे अनुभवों को दर्ज करती संस्मरणों की यह श्रृंखला बचपन की बेपरवाही, युवावस्था में स्कूल कॉलेज के अनन्य अनुभव, तीज त्योहारों के उल्लास, सत्तर अस्सी के दशक में छात्राओं के सामने आने वाली चुनौतियों को हमारे सामने रखती है तो प्रतिबंधों से उपजे आक्रोश को लेखनी की स्याही में ढालने का, उसके परिणामस्वरूप उपजी असहजता, समस्याओं, धमकियों और उनसे निपटने की तरकीबों का बेबाक चित्रण करती है। इस यात्रा से गुजरते हुए वह स्त्री के जीवन पर विचार रखती, कहती हैं कि समर्पण और झेलना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रश्न उठाती हैं ‘क्यों चाहिए समाज की स्वीकृति’।
वह कहती हैं ‘मैं बिंदास जीवन जीना चाहती थी और जीती रहूँगी’। बेशक वह स्वयं को क्रिएटर, कनवर्टर और कन्ट्रोलर मानती हैं, हैं भी, फिर भी स्त्री जीवन की समस्याओं से लगातार जूझती रही हैं लेकिन उन्हें मात दे अव्वल भी आई हैं यह इन संक्षिप्त आलेखों से स्पष्ट पता लगता है। इस यात्रा में अंजू जी ने कामकाजी महिलाओं की जद्दोजहद का वह चित्र उकेरा है जिससे हर कामकाजी स्त्री जूझती है। एक ओर बच्चों की मासूम आँखें तो दूसरी ओर सरकारी दायित्वों के प्रति कर्तव्यनिष्ठा किस प्रकार स्त्री को दो दिशाओं में खींचती है इसका बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण किया है लेखिका ने।
स्त्री सम्वेदना के ये शब्द चित्र साठ-सत्तर के दशक में जन्मी स्त्रियों के एहसासों को समेटते हुए अपना हैं तलाश रही स्त्री के परिपक्वता तक पहुंचने की यात्रा है।
सरकारी दफ्तर के कुछ चित्र जैसे ज्यों के त्यों प्रस्तुत किये हैं उसके लिए लेखिका बधाई की पात्र हैं।
लेखिका की इस यात्रा में कहीं भोलापन है, नटखट शरारतें है, जिज्ञासा है, साहस है जिसे रोचक ढंग से उन्होंने हैं प्रकार प्रस्तुत किया है कि पाठक एक के बाद एक संस्मरण पढ़ता चला जाता है। उनके ही शब्दों में कहा जाए तो ‘गुलाबी गलियारे मेरे जीवन की सच्चाइयों की पदचापों से सजे हैं। इसमें सभी रसों की बौछार हैं, सभी मौसम दिखाई देंगे और जेव्वन रूपी सिक्के के दोनों पहलू भी देखने को मिलेंगे।’
पुस्तक के अंत में दी चित्र वीथिका में कुछ महत्वपूर्ण अवसरों के चित्र हैं जो अपनी कहानियां स्वयं कहते हैं।