लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
जयपुर, राजस्थान
सुगम भाषा लगे हिंदी, सभी कहते जुबानी है
बने अब राष्ट्र-भाषा यह, हुई विकसित कहानी है
बने लय ताल सुर इसमें, लिखें बोलें इसे सारे
बिहारी और तुलसी ने, रचे दोहे सभी प्यारे
पुरोधा लिख रहें इसमें, भरे भंडार नित इसका
यही रसखान की हिंदी, कथा इसकी पुरानी है
बने अब राष्ट्र-भाषा यह, हुई विकसित कहानी है
यहाँ संस्कृत रही भाषा, भरा साहित्य है जिसमें
रचे हैं छंद कवियों ने, मनोहर गीत है इसमें
हजारों गीत सब फिल्मी, करे इस बात को पुख्ता
यही विज्ञान सम्मत है, इसी की लय सुहानी है
बने अब राष्ट्र-भाषा यह, हुई विकसित कहानी है
सजाकर भाव का चन्दन, करे इसका सभी वन्दन
विधाओं से सजी क्यारी, सजाते काव्य का नंदन
सभी को जान से प्यारी, बसी सबके दिलों में है
बहुत ही पावनी हिंदी, जगत शोभा बढ़ानी है
बने अब राष्ट्र-भाषा यह, हुई विकसित कहानी है