समीक्षक- ऊषा किरण
कवयित्री- सुप्रसन्ना झा
काव्य संग्रह- अवनि से अंबर तक
करीब चार पाँच दिनों से धीरे-धीरे पढ़ रही थी ‘अवनि से अंबर तक’ सुप्रसन्ना जी द्वारा लिखित काव्य संग्रह। बड़ा सकून मिला इस काव्य संग्रह को पढ़कर।
बहुत ही सरल और सहज तरीके से उन्होंने अपने हर अनुभव को पाठक के सामने रखा है।
‘अवनि का प्रेम अंबर से’ कविता में उनका प्रकृति से प्रेम परिलक्षित होता है। साथ ही साथ प्रकृति की अनुपम, मनोहर शोभा के लिए वो ईश्वर के प्रति अपनी असीम श्रद्धा व्यक्त करती हैं-
हे देव! तुम्हारा वंदन, अभिनंदन
ये ओस भरी सुबह
बूंद-बूंद मोतियों सी चमक…
वंदन थाल लिए प्रेम की पथ पर
उत्सुक नयनों से निरखते स्वागत को आतुर
आओ हे देव! तुम्हारा वंदन, अभिनंदन है।
‘कार्तिक स्नान’ कविता में भारतीय धार्मिक आस्था की झलक दिखती है तो ‘ममत्व’ में पर्यावरण की सुरक्षा दिखाई देती है। ‘संकल्प’ में तो उन्होंने अपने पथ से विचलित न होकर दृढ़ता से आसमान छूने का पाठ पढ़ाया है-
जिंदगी की राहों में
आती हैं मुश्किल हजार
लेकिन हो संकल्पित मन
तो हो जाती बाधाएं पार।
साथ ही साथ ‘हे मातृभूमि! तुम्हें प्रणाम।’ में अपनी भारत भूमि की सभ्यता और संस्कृति का दर्शन कराया है। वहीं कुछ कविताओं में उनकी कोमल भावनाओं से भी हम रुबरु होते हैं। ‘यादों की उम्र’ में जीवन के कटु सत्य को पढ़कर आँखें भर आती हैं-
तुम कहीं नहीं थे, किन्तु
तुम्हारी बातें
तुम्हारी यादें
हमारे साथ थीं
चलो, अच्छा है कि
यादों की कोई उम्र नहीं होती।
तो वहीं ‘प्रथम भेंट’ में श्रृंगार रस झिलमिलाता है। अहसास/बेटियाँ/ये क्षण अशेष/अवसान/बदलते रंग/बरखा/तजुर्बा आदि कविताओं में जीवन के हर पहलूओं को उजागर किया है।
भाषा कहीं ओजपूर्ण है तो कहीं भावानुरुप कोमल एवं माधुर्य गुण से ओत प्रोत है। कुल मिलाकर यह कविता संग्रह पठनीय एवं मनन करने योग्य है।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ आपके साथ है और अगले काव्य संग्रह की प्रतीक्षा है। आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे ताकि अवनि से अंबर तक खुशहाली फैले।