तुम्हारा मिलना: प्रीति

प्रीति
चंडीगढ़

कुछ यूँ राहों में मिल गए
जैसे बंजर जीवन में रंग भर गए
थी जो मोहब्बत अधूरी
पूरी कर गए

एहसास था कि अकेले हैं
दो पल साथ चल कर जता गए
था प्यार सच्चा हमारा
पर हम झूठे बन गए।

थी अपनो की प्रीत की जंजीर
जो हम तोड़ ना सके
लड़ लेते दुनिया से
पर अपनों से कैसे लड़ते

था इश्क मासूम मेरा
जो समझ ना पाया
ख्वाहिश मिलने की थी
मिलने के सपने खो गए

आँसुओं की कहानी फिर शुरू हुई
याद आया फिर तुम्हारा मिलना
नहीं बन पाई रुक्मणि में तेरी
पर सदा बन कर रहूं राधा तेरी