रूची शाही
मैंने जी भर जिया सबकुछ
तुमसे प्रेम भी और
मेरे लिए तुम्हारी उपेक्षा भी।
तुम्हें प्रेम करते हुए मैंने नहीं देखा
अभी दिन है कि रात
रविवार है कि सोमवार
सुबह है कि शाम
बस प्रेम किया तुमसे।
तुमसे नाराज होते हुए भी
मैंने नहीं रखा सीमाओं का ध्यान
तोड़ दी शब्दों की मर्यादाएं
चीखी चिल्लाई बहुत कोसा तुम्हें
तुमने कभी बहुत दिया तो
तो कभी अचानक से खाली भी कर दिया
पर जब जो मिला मुझे
उसे जी भर जिया
या यूं कहूं चरम तक सहा मैंने
सारे अनुभवों को समेटने के बाद
यही जाना मैंने
प्रेम संवरने से ज्यादा
बिखरने का नाम है
प्रेम का हमेशा बने रहना
मुश्किल ही नही नामुमकिन है।